खुश रहने में क्या हर्ज है

बॉस का मुड ख़राब है,
सुबह से वे नाराज़ हैं,
मुझे डाँटना उनका फ़र्ज़ है,
तो खुश रहने में क्या हर्ज है।
मेरे मातहत मुझसे नहीं डरते हैं,
सामने से जब गुजरते हैं,
वे मुझे नमस्ते नहीं करते हैं।
पर सब कुछ करते हैं जो उनका फ़र्ज़ है।
तो खुश रहने में क्या हर्ज है।
शाम के धुँधलके में
जब घर लौटता हूँ ,
थककर चूर स्वयं में मशगूल
पर हाय यहाँ भी बत्ती गुल।
आप न हो कनफ्युज
राज्य विद्युत मंडल नहीं
वह श्री मति जी का मुखमंडल है।
उनके मुखमंडल की आभा
बिल्कुल मद्धिम हुआ है।
क्योंकि पिकनिक की खबर इन्हें,
मैंने नहीं पड़ोसन ने दिया है।
इन्हें बड़ा कष्ट है,
पड़ोसन का दिया मर्ज़ है,
तो खुश रहने में क्या हर्ज है।







